जय श्री महाकाल
धार्मिक पौराणिक और दिव्य नगरी उज्जैन में विराजित भगवान महांकाल Mahakal की महिमा अपरम्पार है।
बाबा को उनके भक्त और प्रजाजन आज भी राजा मानते क्योकी बाबा महाकाल राजा की तरह पूरे राज ठाठ से प्रजा का हाल जानने सवारी ले कर निकलते हैं।
महाकाल की शाही सवारी निकलती है तब बड़े-बड़े मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, कलेक्टर ओर sp जैसे बड़े आला अधिकारी नत मस्तक रहते हैं ओर पैदल चलते हैं। सवारी की महिमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है।
हर साल लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन कर अपने आप को पुण्यात्मा मानते हैं। आज भी बाबा के दरबार मे हर त्यौहार को धूम धाम से मनाया जाता हैं।
बाबा महांकाल की आरती शैली कुछ इस प्रकार है की श्मशान में जले मुर्दे की राख से सुबह 4 बजे आरती की जाती है। जो भस्मारती के नाम से प्रसिद्ध है। यह आरती अघोरी बाबा करते हैं।
महाकाल की महिमा-
शास्त्रश्लोक के अनुसार
जिस जगह पर बाबा विराजमान हैं वह पृथ्वी का केंद्र स्थान है। अर्थात धरती का नाभि स्थान है।
पूर्वज बताते हैं कि उज्जैन में कोई भी राजा रात नही गुजार पाया ओर आज भी बड़ा मंत्री उज्जैन में रात नही रुकता है।
महाकाल मंदिर निर्माण कब हुआ ये बता पाना कठिन है। क्योंकि वेदों और पुराणो के अनुसार मंदिर का निर्माण प्रजापति ब्रह्मा जी ने किया है।
प्रातः की भस्मारती के समय माता पार्वती ओर पुत्र गणेश के मुख पलटा दिया जाता है। ओर भस्मारती के वक्त स्त्रियों को नही जाने दिया जाता हैं।
12 शिवलिंग में से यह एक मात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। बाबा महाकाल की दिन में 3 बार आरती की जाती है। सुबह 8 बजे दोपहर 12 व सायंकाल।
श्रवण मास के प्रत्येक सोमवार को बाबा महांकाल की पूरी राजकीय ढंग से सवारी निकलती है। सवारी में काफी भीड़ रहती है। जो मंदिर से प्रारंभ हो कर क्षिप्रा तट पर रामघाट पर हो कर पुनः मंदिर की ओर प्रस्थान करती है। इस तरह बाबा mahakal अपनी प्रजा का हाल जानते हैं।
मंदिर 3 भागो में विभक्त है। प्रथम तल में बाबा का गर्भग्रह है। वही द्वितीय मंजिल पर ओकारर्लिंगेश्वर जो हमेशा श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। तृतीय मंजिल पर नागचंद्रेश्वर विराजमान हैं। जिनके दर्शन केवल नागपंचमी के दिन ही किए जा सकते हैं।
पुराणो के अनुसार महांकाल mahakal का मंदिर रुद्र सागर के पश्चिम में स्थित है। व पूर्व में गढ़कालिका माता का मंदिर है।
रुद्र सागर के जल से बाबा का अभिषेक होता रहता है। मान्यता है कि रुद्र सागर भगवान के पैर के अंगूठे से बना है।
सायंकाल आरती के वक्त पक्षियों के झुंड मंदिर के शिखर के चारो तरफ़ चक्कर लगाते हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि ये बाबा की महिमा है।
Mahakal मंदिर इतिहास-
ज्योतिर्लिंग के स्थापना के बारे में बता पाना कठिन है। पुराणो के अनुसार एक गुप्त बालक के हाथों ज्योतिर्लिंग की स्थापना का प्रमाण है।
महाकाल मंदिर तीन भागो में विभक्त है। प्रथम तल में बाबा का गर्भग्रह है। वही द्वितीय खंड पर ओकारर्लिंगेश्व है। तृतीय खंड पर नागचंद्रेश्वर विराजमान हैं। जिनके दर्शन केवल नागपंचमी के दिन ही किए जा सकते हैं।
मंदिर परिसर में एक कुंड है। जिसे पवन कोटि तीर्थ कहते हैं। कुंड के सामने से हो कर ही गर्भग्रह तक जाने का रास्ता है।
पवित्र मंदिर को मुगलो द्वारा कई बार खण्डित किया गया। हिन्दुओ की पवित्रता को भंग किया गया मंदिर तोड़ कर।
इतिहास के अनुसार जब यवनों का शासन था तब हिन्दुओ की परंपरा को काफी नुकसान पहुचाया गया आक्रांता इल्तुतमिश द्वारा मंदिर में लूटपाट की गई पवित्र मंदिर को तोड़ कर ज्योतिर्लिंग को पावन कोटि कुंड में फेंक दिया गया था।
- सन 1730 में मराठाओ ने मालवा क्षेत्र में फतेह हासिल कर ली थी। उस समय इस क्षेत्र की उज्जैन राजधानी रही तब के हिन्दू शासको ने मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया। मराठा शासक रणोजी शिंदे के मंत्री ने वर्तमान मंदिर को पुनः बनवाया।
मंदिर शैली-
वर्तमान मंदिर को 18 वी शताब्दी में रणोजी शिंदे के मंत्री रामचंद्र शेणवे ने बनवाया था। तब उज्जैन मालवा की राजधानी हुआ करती थी।
मंदिर परिसर में पवन कोटि तीर्थ नामक पवित्र कुंड है। जिसके पश्चिम से हो कर गर्भगृह तक जाने रास्ता है।
गर्भगृह की विशेष अदभुत महिमा है। वहाँ की अपार दिव्यता वख्यान नही की जा सकती। गर्भगृह के चारो ओर चांदी की परत चढ़ाई हुई है। जिस पर पवित्र श्लोक अंकित है। जो मंदिर की शोभा बढ़ा रहे हैं।
मंदिर की कलाकृतिया मराठा शासन के वक्त की है। जो आज भी मूर्त रूप में है। हालांकि समयानुसार कई बदलाव होते रहे हैं।
गर्भगृह तक जाने का रास्ता कुंड से हो कर जाता है। मंदिर परिसर में कई छोटे छोटे पवित्र मंदिर बने हुए हैं।
साक्षी गोपाल मंदिर-
यह पवित्र मंदिर भगवान बलराम ओर राधा-कृष्ण का है। जो कि गर्भगृह के ऊपर मंदिर परिसर में स्थित है।
मान्यता है कि महाकाल के दर्शन करने के बाद साक्षी गोपाल के दर्शन किए जाते हैं।
ऐसा इसलिए किया जाता है कि महाकाल mahakal के दर्शन किए इसके भगवान गोपाल साक्षी(गवाह) रहते हैं।
माता अवन्ति मंदिर-
माता अवन्तिका का यह पवित्र मंदिर भी वही स्थित है। माता अवन्ति कि महिमा भी अपरम्पार है। यह अवन्तिका का एक मात्र मंदिर है।
मंदिर परिसर ऐसे कई पवित्र मंदिर है। जो हमेशा श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। पाठको से अनुरोध है कि आप महाकाल मंदिर दर्शन करने जाए तो परिसर में स्थित पवित्र मंदिरों में दर्शन जरूर करे ताकि हमारी प्राचीन शैली के बारे में पता चलेगा।
महाकाल दर्शन Mahakaleshwar Jyotirlinga darshan-
बाबा के दर्शन की उत्तम व्यस्था मंदिर प्रबंधक की गई है। बाबा के साक्षात दर्शन के लिए अब बुकिंग व्यवस्था चालू की गई है।
दर्शन के लिए बुकिंग मंदिर की officeal website के माध्यम से कर सकते हैं। जो कि निःशुल्क है।
Vip दर्शन के लिए शुल्क देना होता है जिसकी सम्पूर्ण जानकारी website पर उपलब्ध है।
Live दर्शन-
जो श्रद्धालु बाबा के साक्षात दर्शन करने नही आ सकते उनके लिए मंदिर प्रबंधन ने live दर्शन की उचित व्यवस्था की गई है। बाबा के लाइव दर्शन officeal यूट्यूब व वेबसाइट के माध्यम से भी किए जा सकते हैं।
उज्जैन इतिहास-
उज्जैन को उज्जैनी, अवन्तिका आदि प्राचीन नामो से भी जाना जाता है। इस नगरी का धार्मिक और पौराणिक महत्व भी बहुत अधिक है। यही भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली है जिसे सांदीपनि आश्रम के नाम से जाना जाता है।
52 शक्ति पीठो में से एक शक्ति पीठ हरसिद्धि मंदिर यही विराजमान हैं। प्राचीन काल मे उज्जैयनी पहले एक विस्तृत वन थी। जिसे महाकाल वन के नाम से जाना जाता था।
जिसमे महाकाल की ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित थी। यहां पर प्राचीन काल मे ऋषी मुनि नर यक्ष आदि की यह तपस्या स्थली रही है।
महादेव को यह महाकाल वन अधिक प्रिय था इसलिए महादेव साक्षात यही निवास करते हैं। यह mahakal वन बहुत घना व बड़ा था।
उज्जैन महाकाल पहुच मार्ग-
यहां पर आने के लिए परिवहन रेल हवाई व यातायात साधन में माध्यम से पहुँचा जा सकता हैं।
हवाई मार्ग से आने के लिए 45km दूरी पर इंदौर में हवाई अड्डा है।